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लेखनी प्रतियोगिता -08-Jun-2023 दौलत की भूख

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                               दौलत की भूख
   
         दौलत  की भूख बहुत  बुरी होती है । मानव  दौलत  की भूख में पागल  होजाता है। दौलत  की भूख में मनुष्य कुछ भी कर सकता है उसको भला बुरी कुछ  भी दिखाई  नहीं देता  है  नीचे लिखी छोटी सी कहानी हमें यह शिक्षा देती है कि दौलत  की चाह में बेटे बहू किस तरह  सभी रिश्ते भूल गए। 

              गांव में अपने बुजुर्ग पिता के अंतिम संस्कार के बाद नहाने के बाद दोनों बेटे घर के बाहर आंगन में अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथ बैठे हुए थे । कुछ लोग लौट चुके थे और कुछ वहीं अबतक बैठे  थे। 

               इतने में बड़े बेटे की पत्नी आई और उसने अपने पति के कान में कुछ कहा।  बड़े बेटे ने अपने छोटे भाई की तरफ देखकर अंदर आने का इशारा किया और खड़े होकर वहां बैठे लोगों से हाथ जोड़कर कहा  हम अभी पांच मिनट में आते है।

      फिर दोनों भाई सुरेश व रमेश  अंदर  कमरे में चले गए अंदर जाते ही बड़े भाई ने फुसफुसाकर छोटे से कहा ," छोटे बक्सा छुपा दिया था ना ?  "

         " हां हमने छुपा दिया था चलिए अब चारों मिलकर जल्दी से देख लेते है । " छोटे भाई  ने जबाब दिया।

           "जल्दी करो,   नहीं तो कोई आसपास का हक जताने आ जाएगा और कहेगा कि तुम्हारे पीछे हमने तुम्हारे बाबूजी पर इतना खर्च किया वगैरह वगैरह क्यों देवर जी ,?",  बड़ी बहु ने कुंटील हंसी हंसते हुए कहा।

              "हां सही कहा भाभी आपने ? "  छोटे ने भी सहमति में गर्दन हिलाते हुए कहा।

        तबतक छोटी बहू  तेजी से बाबूजी के कमरे में जाकर बक्सा निकाल लाई । 

               "मैं दरवाजा बंद कर देती हूं ?" ,बड़ी बहु तेजी दिखाते हुए बोली।

         दोनों भाई तुरंत तेजी से नीचे झुके और छोटी बहु द्वारा लाएं गये बक्से को खोलने लगे ।

                " अरे पहले चाबी तो  लेलो वो ऐसे थोड़े ना खुलेगा मैंने आते ही ताला लगाकर चाबी छुपा ली थी । " बडी बहु ने अपने पल्लू में एक छोर पर बंधी हुई चाबी निकाली और अपने पति को पकड़ा दी । बड़े भाई ने जैसे ही बक्सा खोला तो वहां मौजूद चारों ने बक्से में झांकते हुए उसमें छुपी हुई दौलत गहने देखने की उत्सुकता दिखाई ।

            बक्से में बड़े और छोटे की पुरानी तस्वीरें कुछ बर्तन कुछ उन्हीं दोनों के छोटे छोटे कपड़े सहेजकर रखें हुए थे चारों को विश्वास नहीं हो रहा था कि कोई ये सब भी भला सहेजकर रखता है उन्हें उम्मीद थी बाबूजी यहां गांव में उनकी स्वर्गीय सासूमां के गहने रुपये इत्यादि संभालकर रखें हुए हैं।

                 लेकिन यहां तो। चारों के चेहरे निराशा से भरे हुए थे ।

              उसी समय तभी बड़े भाई ने कहा , "मुझे तो पूरा विश्वास था कि बाबूजी ने कभी अपनी दवाओं तक के रुपये नहीं लिये तो उनकी बचत के रुपये और मां के गहने इसी बक्से में रखे होंगे लेकिन इसमें तो . कुछ भी नहीं है।"

       णतभी छोटे भाई  रमेश की नजर बक्से के कोने में कपड़ों के बीच में एक कपड़े की थैली पर गयी उसने तुरंत आगे बढ़कर उस थैली को बाहर निकाला ये देखकर सबकी नजरों में अचानक चमक आ गई सभी ने लालची नजरों से उस थैली को टटोला उसमें कुछ रुपये थे और साथ में एक  कागज जिसपर कुछ लिखा हुआ था छोटे भाई ने रुपये गिने तो लगभग बीस हजार रुपये थे।

              " अरे कागज पढ़ो जरुर किसी बैंक अकाउंट या लाकर का होगा ?" , बड़ी बहु ने कहा।

      बड़ा बेटा छोटे के हाथों से उस कागज को छीनकर पढ़ने लगा। जिसपर लिखा हुआ था। ," क्या ढूंढ रहे हो  ,? संपत्ति  चाहिऐ क्या?
हां  हा हा ये ही है मेरी और तुम्हारी मां की संपत्ति तुम्हारी बचपन की वो यादें जिसमें तुम शामिल थे वो पल वो खूशबू वो प्यार वो अनमोल पल आज भी इन कपड़ों में इन तस्वीरों में इन छोटे छोटे बर्तनों में मौजूद हैं यही है हमारी अनमोल दौलत ...तुम तो हमें यहां अकेले छोड़ कर चले गए अपने भविष्य के लिए मगर हम यहां तुम्हारी यादों के सहारे ही  जिन्दा थे।   

                तुम्हारी मां तुम् दोनो  को देखने को तरसते हुए  मर गई थी।    और शायद में भी  अब इस दुनियां से रुखसत  करने वाला हूँ। अबतक तुमसे कोई पैसा नहीं लिया अपनी पेंशन से ही गुजर बसर करता रहा।  मगर तुम लोगों को हमेशा इस बक्से में अनमोल दौलत है जानबूझकर सुनाता रहा।

              मगर बच्चों ध्यान देना अपने बच्चों को कभी अपने से दूर मत करना वरना जैसे तुमने अपने भविष्य का हवाला देकर खुदको हमसे दूर किया वैसे ही ।  बच्चों दुनिया का सबसे बड़ा दुख जानते हो क्या होता है अपनों के होते हुए भी किसी अपने का पास नहीं होना जीवन में उस समय कोई दौलत गहने संपति काम नहीं आते ।

           मेरे प्यारे  बच्चों ,! में मरने के बाद भी तुमपे बोझ नहीं बनना चाहता इसलिए ये पैसे मेरे अंतिम संस्कार का खर्च है ।"

                 पूरा कागज पढ़ते ही बडे बेटे के साथ साथ छोटा बेटा भी फूटफूट कर रो पड़ा.। और अपने बाप को कोसते हुए  बोला," हम यहाँ जिस उम्मीद से आये थे उस सब पर पानी फिर गया।बुड्ढा हमें कंगाल कर गया। इतनी प्रश्न मिलती थी ना जाने कहाँ खर्च करता था। इससे अच्छा तो आते ही नही ।"

          ,"हाँ देवर जी आप ठीक कह रहे हौ अच्छा तो यही था कि हम यहाँ आते ही नहीं। हमने अपना समय यौन ही खराब किया है । अब तो यहाँ तेरह दिन तक रुकना पडेंगा।"  , बड़ी  बहू ने अफसोस  प्रकट किया। 

            इस तरह श्यामलाल के दोनों बेटौ को तेरहवी तक रुकना पडा। अब यह उनकी मजबूरी  थी। वह सभी दौलत  के लालच में आये थे। लेकिन दौलत  हाथ नहीं आई। 


आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना।
नरेश  शर्मा " पचौरी "

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8 Comments

अदिति झा

27-Jun-2023 08:46 PM

Nice

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Alka jain

27-Jun-2023 07:42 PM

Nice 👍🏼

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madhura

17-Jun-2023 07:01 AM

very nice

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